अमृतमहल गाय: भारत की ऐतिहासिक नस्ल, जानें खासियत और उपयोगिता

भारत में देशी गायों का दूध अधिक फैट वाला होता है और इसे अमृत के समान माना जाता है। कई नस्लें खेती करने के उद्देश्य से भी पाली जाती है, जिसमें अमृतमहल गाय सबसे मशहूर मानी जाती है।

अमृतमहल गाय के बारे में विवरण

अमृत महल मवेशी नस्ल कर्नाटक के मैसूर ज़िले में पाई जाने वाली नस्ल है। अमृत महल गाय दिखने में बहुत सुंदर होती है।

1800 के मध्य में, मैसूर राज्य के तत्कालीन शासकों ने अमृत महल नस्ल बनाई। यह नस्ल स्थानीय लोगों के अनुकूल थी।

बंदूक बैल, पैक बैल और अन्य नामों से बैलों को युद्ध उपकरणों के परिवहन के लिए वर्गीकृत किया गया था। अमृत महल का मतलब है दूध। ये गायें दुर्भाग्य से कम दूध देती हैं, इसलिए इन्हें भारवाहक नस्ल कहा जाता है।

अमृत महल नस्ल की विशेषताएँ 

अमृत महल गाय नस्ल की विशेषताएँ निम्नलिखित दी गयी है:

 

  • अमृत महल नस्ल के रंग विभिन्न प्रकार के भूरे रंगों में होता है। इन रंगों में सफेद से लेकर काले तक के शेड्स शामिल होते हैं, जिनमें चेहरे और गलकंबल पर सफेद-भूरे निशान पाए जाते हैं।                
  • मुँह, पैर और पूंछ का सिरा आमतौर पर काले होते हैं, लेकिन उम्रदराज पशुओं में हल्के रंग के हो सकते हैं।
  • सिर लंबा और नाक की ओर पतला होता है, माथा हल्का उभरा हुआ होता है और बीच में संकरा व झुर्रीदार होता है।
  • सींग सिर के ऊपर से निकलते हैं, सींग आपस में करीब होते हैं और ऊपर व पीछे की ओर बढ़ते हैं। इनका सिरा नुकीला और काला होता है।
  • आँखें हल्की लालिमा लिए होती हैं, कान छोटे होते हैं, क्षैतिज स्थिति में होते हैं, अंदर से पीले और सिरे पर पतले होते हैं।
  • गलकंबल पतला होता है और बहुत दूर तक नहीं फैला होता, शील और नाभि का भाग छोटा और शरीर से सटा हुआ होता है।
  • बैलों में कूबड़ अच्छी तरह विकसित और सुंदर होता है, जिसकी ऊँचाई लगभग 8 इंच होती है, गर्दन मजबूत और लंबी होती है, पीठ समतल होती है, कमर चौड़ी और पिछला हिस्सा समतल होता है।
  • शरीर मजबूत और मांसल होता है, जिसमें कंधे और पिछले हिस्से अच्छी तरह से बने होते हैं।
  • इस नस्ल की औसत ऊँचाई 50 से 52 इंच होती है।औसत दुग्ध उत्पादन लगभग 1000-1200 किलोग्राम होता है। औसत ब्यांत का अंतराल लगभग 600 दिन होता है।