भारत में पाई जाने वाली बकरियों की प्रमुख नस्लें और उनके फायदे

गांव में बकरी पालन पिछले कई दशकों से चल रहा है, लेकिन आज बकरी पालन एक बेहतर व्यवसाय के रूप में तेजी से बढ़ रहा है।

बकरी पालन से जुड़कर कई किसान आर्थिक रूप से मजबूत हो गए हैं और अपने जीवन-यापन को बदल रहे हैं। वहीं, बहुत से लोग बकरी पालन करके बेहतर कमाई कर रहे हैं।

यही कारण है की आज के इस लेख में हम आपको बकरियों की नस्लें बातयेंगे, नस्लों से जुड़ी जानकारी प्राप्त करके आप आपने क्षेत्र के हिसाब से बकरी की नस्ल का चुनाव कर सकते हैं।

भारतीय बकरियों की नस्लें

देश में कई प्रकार की बकरियों की नस्लें देखने को मिलती हैं, देश भर में फैली हुई स्थानीय अनिर्दिष्ट बकरियों के अलावा लगभग 19 अच्छी तरह से परिभाषित भारतीय नस्लें हैं। इन सभी नस्लों को स्थान के आधार पर वर्गीकृत किया गया हैं -

बकरियों की नस्लों को स्थान या क्षेत्र के आधार पर वर्गीकृत (बाटा) गया हैं। इनमे शामिल हैं हिमालय - क्षेत्र (पहाड़ी क्षेत्र), उत्तरी क्षेत्र की नस्लें, मध्य क्षेत्र की नस्लें, दक्षिणी क्षेत्र की नस्लें और पूर्वी क्षेत्र की नस्लें इन सभी की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

1. पश्मीना बकरी

  • इसका पालन पहाड़ी क्षेत्र में किया जाता हैं।
  • इस नस्ल की बकरी दिखने में छोटी और सुंदर होती हैं जिनकी चाल बहुत तेज होती है।
  • इन्हें हिमालय, लद्दाख और लाहौल और स्पीति घाटियों में 3400 मीटर से अधिक ऊंचाई पर पाला जाता है।
  • पश्मीना बकरी सबसे मुलायम और गर्म पशु फाइबर का उत्पादन करने के लिए जानी जाती हैं जिसका उपयोग उच्च गुणवत्ता वाले कपड़ों के लिए किया जाता है।
  • पश्मीना की उपज 75-150 ग्राम/बकरी तक होती है।

    2. जमुनापारी

    • जमुनापारी नस्ल की बकरी उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में पाई जाती हैं।
    • ये दिखने में बड़े आकार की, लंबे, बड़े मुड़े हुए लटकते कान वाली बकरी हैं।
    • जमुनापारी के पिछले हिस्से पर लंबे और घने बाल होते हैं और ये चमकदार बकरी की तरह दिखते हैं।
    • सींग छोटे और चपटे होते हैं।
    • नर का वजन 65 से 86 किलोग्राम और मादा का वजन 45-61 किलोग्राम होता है।
    • इस बकरी का दूध का उत्पादन 2.25 से 2.7 किलोग्राम प्रति दिन होता हैं। 
    • जमुनापारी नस्ल 250 दिनों की अवधि तक दूध उत्पादन कर सकती हैं और 3.5 प्रतिशत वसा इसके दूध में होता हैं। 

    3. बीटल

    • ये एक बकरी की बहुत अच्छी नस्ल हैं।
    • इन बकरियों का रंग लाल और भूरा होता है, कई बकरियों के ऊपर सफेद गहरे धब्बे होते हैं।
    • नर का वजन 65-86 किलोग्राम होता है और मादा का वजन 45-61 किलोग्राम होता है।
    • इस नस्ल की मादा बकरी प्रतिदिन लगभग 1 किलोग्राम दूध देता है, नर की दाढ़ी देखने को मिलती हैं।
    • पहाड़ी क्षेत्र और उत्तरी क्षेत्र में इस नस्ल का पालन किया जा सकता हैं।

      4. बारबरी

      • बारबरी नस्ल की बकरिया  उत्तर प्रदेश के इटावा, एटा, आगरा, मथुरा जिलों में और  हरियाणा के करनाल, पानीपत और रोहतक जिलों में पाई जाती हैं।
      • बारबरी नस्ल के  रंग अलग-अलग होते हैं, जिनमें सफेद, लाल और भूरे रंग के धब्बे आम देखने को मिल जाते हैं, दिखने में इनके बाल छोटे होते हैं।
      • वयस्क नर का वजन 36-45 किलोग्राम और मादा का वजन 27-36 किलोग्राम होता है।
      • 108 दिनों की अवधि में प्रतिदिन 0.90 से 1.25 किलोग्राम दूध (वसा 5%) देते हैं।

      5. बंगला नस्ल

      • इस नस्ल की बकरियाँ तीन रंगों में आती हैं: काला, भूरा और सफ़ेद।
      • इस नस्ल का मांस उत्तम है।
      • नर बकरी का वजन 14-16 किलोग्राम होता है, जबकि मादा बकरी का वजन 9-14 किलोग्राम होता है।
      • इस नस्ल में साल में दो बार बकरियाँ पैदा होती हैं और अक्सर जुड़वाँ बच्चे पैदा होते हैं।
      • बंगला बकरियों की अच्छी गुणवत्ता की खाल की भारत और विदेशों में फुटवियर उद्योग में बड़ी माँग है।

      6. काठियावाड़ी

      • यह नस्ल कच्छ, उत्तरी गुजरात और राजस्थान की में पाई जाती है।
      • इस नस्ल की बकरियों का रंग काला होता है और गर्दन पर लाल रंग के निशान होते हैं।
      • मादा बकरी प्रतिदिन लगभग 1.25 किलोग्राम दूध देती है।
      • इस बकरी का पालन मास और दूध दोनों के लिए किया जाता हैं।

        7. बेरारी

        • इस नस्ल की बकरी महाराष्ट्र के नागपुर और वर्धा जिले तथा मध्य प्रदेश के निनार जिले में पाई जाती है।
        • ये लंबी और गहरे रंग की नस्लें हैं।
        • मादा प्रतिदिन लगभग 0.6 किलोग्राम दूध देती है।
        • ज्यादातर इस बकरी का पालन मॉस के लिए ही किया जाता हैं।

        8. सुरती

        • सुरती नस्ल की बकरिया महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थ के कुछ क्षेत्रों में पाई जाती हैं।
        • सुरती बकरियाँ दिखने में बेरारी बकरियों से मिलती-जुलती हैं और इनके पैर सफ़ेद और छोटे होते हैं।
        • इसके अलावा सुरती बम्बई, नासिक और सूरत में लोकप्रिय है।
        • सुरती नस्ल की बकरिया अच्छी दूध उत्पादक हैं और प्रतिदिन 2.25 किलोग्राम दूध देती हैं।

        बकरियाँ हमेशा से गरीब लोगों को जीवित रखती आई हैं और उनका भरण-पोषण करती आई हैं, चाहे वह ठंडी और शुष्क पहाड़ियाँ हों, गर्म और शुष्क रेगिस्तान हो, पहाड़ों के पहाड़ी क्षेत्र या रिसने वाली मिट्टी से बनी खड्डें हों।

        बकरियों का वर्तमान वैश्विक वितरण बताता है कि दुधारू किस्म की बकरियाँ समशीतोष्ण क्षेत्रों में अधिक हैं, जबकि दोहरे किस्म या मांस किस्म की बकरियाँ अधिकतर उपोष्णकटिबंधीय और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाती हैं।

        बकरी कैप्रा वंश का सदस्य है और बोविडे (खोखले सींग वाले जुगाली करने वाले) परिवार से संबंधित है।