सरसों की फसल को तिलहन की मुख्य फसलों के तौर पर माना जाता है। भारत के बड़े क्षेत्र में किसानों ने सरसों की बिजाई की है। हालाँकि, फसल की देखभाल फसलीय पैदावार से जुड़ी महत्वपूर्ण इकाई है। अगर कोई किसान फसल की अच्छे तरीके से देखभाल नहीं कर पाता है, तो कीट रोग फसल पर आक्रमण करके बर्बाद कर देते हैं। विशेषज्ञों का कहना है, कि कृषकों को वक्त रहते फसलों पर दवा का छिड़काव कर देना चाहिए। सरसों में लगने वाले कीट रोग भी काफी ज्यादा हानि पहुंचाते हैं। बतादें, कि इससे फसल का संरक्षण करने के लिए जानकारी होनी आवश्यक है।
सरसों की फसल में वैसे तो विभिन्न प्रकार के रोग लग जाते हैं। यह फसल कीटों की चपेट में भी आती है। लेकिन सबसे बड़ा संकट माहू कीट का रहता है। विशेषज्ञों का कहना है, कि माहू कीट का रंग पीला, हरा और काला होता है। यह पौधे की पत्ती, शाखा, फूल एवं फलियों पर चिपक जाता है। साथ ही, उनका रस चूस कर पौधे को सुखा देता है। इसके पश्चात में पौधा पीला पड़ने लगता है। यदि बचाव न किया जाए तो पौधे की मृत्यु हो जाती है।
माहू कीट को हिंदी में फुदका और अंग्रेजी में एफिड्स कहा जाता है। यह एक उभयलिंगी पौधा होता है। उभयलिंगी होने की वजह से यह स्वयं ही नवीन कीट को जन्म देता रहता है। बतादें, कि इसकी प्रजनन दर काफी हैरान करने वाली है। माहू कीट का जीवनकाल मात्र सात दिनों का होता है। मगर इसकी प्रजनन दर देखें तो यह 24 घंटे में ही 80 हजार बच्चे पैदा कर देता है।
भारत में सरसों की फसल बढ़नी चालू हो गई है। किसानों को बेहतरीन उत्पादन की संभावना है। परंतु, विशेषज्ञों का कहना है, कि इस दौरान माहू कीट से संरक्षण अत्यंत आवश्यक है। अगर माहू कीट पर समय रहते नियंत्रण नहीं किया गया। साथ ही, एक बार इस कीट का फैलाव बड़े इलाके में हो गया तो आवश्यक फसल को बर्बाद कर देगा। कीट का संकट नवंबर माह से लगाकर मार्च माह तक बना रहता है।
कृषकों को फसलीय संरक्षण के लिए सरसों की फसल की जाँच करते रहनी चाहिए। फसल को देखते रहें, कि कहीं माहू कीट फसल के ऊपर तो नहीं चिपक गया है। अगर पौधे पर कीट नजर आ रहा है अथवा किसी प्रकार की क्षति नजर आ रही है, तो अतिशीघ्र विशेषज्ञों से सलाह लेकर कीटनाशक का छिड़काव कर देना चाहिए।