भारत में खरीफ फसल चक्रों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

जलवायु परिवर्तन वर्तमान में भारत की कृषि पद्धतियों और फसल चक्रों पर गहरा प्रभाव डाल रहा है। खरीफ फसलों, जिनमें मुख्यत: धान, मक्का और दालें शामिल हैं, खेती का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं। इन फसलों की बुवाई मुख्य तौर पर मानसून के साथ प्रारंभ होती है। लेकिन हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन की वजह से मानसूनी पैटर्न में अनियमितता, अत्यधिक गर्मी, और अप्रत्याशित मौसम घटनाओं ने इन फसलों के उत्पादन में चुनौती खड़ी कर दी है।
जलवायु परिवर्तन और खरीफ फसलों पर प्रभाव
1. समय और बुवाई चक्र में गड़बड़ी
जलवायु परिवर्तन के सबसे प्रत्यक्ष प्रभावों में मानसूनी समय में बदलाव शामिल है। परंपरागत रूप से, भारत में जून से सितंबर के बीच मानसून सक्रिय रहता था, जो खरीफ फसलों की बुवाई के लिए पर्याप्त समय प्रदान करता था।
हालांकि, अब मानसून की शुरुआत में देरी और वर्षा के अचानक रुकने की समस्या बढ़ी है। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में देरी से होने वाली बारिश ने मक्का और सोयाबीन की बुवाई में रुकावट डाली है। इससे न केवल कृषि उत्पादन घटता है, बल्कि किसानों के लिए आर्थिक नुकसान भी बढ़ जाता है।
2. फसल की पैदावार और गुणवत्ता पर असर
बढ़ते तापमान का सीधा असर फसल के उत्पादन और उनकी गुणवत्ता पर पड़ रहा है।
धान: उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में अधिक गर्मी के कारण धान की उपज प्रभावित हो रही है। उच्च तापमान के दौरान फूलने और अनाज बनने की प्रक्रिया बाधित हो जाती है, जिससे दानों की संख्या और उनका आकार प्रभावित होता है।
दालें: गुजरात और राजस्थान में दालों की फसलों पर अत्यधिक गर्मी का दुष्प्रभाव स्पष्ट हो चुका है। इससे फसलों में कीटों और बीमारियों की संभावना भी बढ़ गई है।
मक्का: आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में बेमौसम बारिश और अत्यधिक उच्च तापमान ने मक्के की फसल की गुणवत्ता को कम कर दिया है।
3. अत्यधिक और अप्रत्याशित मौसम की घटनाएं
पिछले कुछ वर्षों में, भारत ने सूखा और बाढ़ जैसी चरम घटनाओं का बढ़ता प्रकोप झेला है। इन घटनाओं ने खरीफ फसलों पर विनाशकारी प्रभाव डाला है।
सूखा: दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों, विशेषकर तमिलनाडु में, असमान वर्षा का कारण लंबे समय तक सूखा पड़ा है। इससे धान और रागी जैसी पानी की जरूरत वाली फसलों पर बड़ा प्रभाव पड़ा।
बाढ़: बिहार और असम जैसे राज्यों में अचानक आई बाढ़ ने न केवल तैयार फसलों को बर्बाद किया बल्कि मिट्टी की उर्वरता को भी कम कर दिया।
क्षेत्रीय प्रभाव
पंजाब और हरियाणा
इन क्षेत्रों को भारत का "धान का कटोरा" कहा जाता है। लेकिन अब सिंचाई पर बढ़ती निर्भरता और मानसून की अस्थिरता ने यहां के किसानों की चिंताएं बढ़ा दी हैं।
महाराष्ट्र और कर्नाटक
सूखे की स्थिति ने यहां के फसल उत्पादकों को भारी नुकसान झेलने पर मजबूर किया है। खरीफ सीजन में दाल और कपास की कम पैदावार इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।
पूर्वोत्तर राज्य
बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएं यहां जूट और धान की खेती को बुरी तरह प्रभावित कर रही हैं।
बदलते हालात में संभावित समाधान
1. सटीक कृषि और तकनीकी नवाचार
कृषि में आधुनिक तकनीकों का उपयोग करना समाधान का एक प्रभावी तरीका हो सकता है। ड्रोन्स और रिमोट सेंसिंग उपकरणों के जरिए किसानों को वर्षा और तापमान की सटीक जानकारी प्राप्त हो सकती है।
2. परंपरागत और सहनशील फसल पद्धतियां
किसानों को उन फसलों का चयन करना चाहिए जो सूखा और अधिक गर्मी जैसी परिस्थितियों को सहन कर सकें। उदाहरण के लिए, बाजरा और ज्वार जैसी फसलें इन परिस्थितियों में अच्छी पैदावार दे सकती हैं।
3. जल संरक्षण तकनीक
सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली, जैसे ड्रिप सिंचाई और स्प्रिंकलर, जल उपयोग को अधिक प्रभावी बना सकती हैं। इससे खरीफ की फसलों की जल आवश्यकता पूरी करने में मदद मिलेगी।
4. फसल बीमा और सरकार की सहायता
सरकार द्वारां प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना जैसे कार्यक्रम, किसानों को प्राकृतिक आपदाओं से बचाव का एक विकल्प प्रदान करते हैं। साथ ही, विभिन्न राज्यों को छोटे और सीमांत किसानों को लगातार आर्थिक और तकनीकी सहायता देने की आवश्यकता है।
5. जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करना
दीर्घकालिक दृष्टिकोण से, कार्बन उत्सर्जन को कम करने और अक्षय ऊर्जा स्रोतों को अपनाने की वैश्विक पहल भारत के कृषि क्षेत्र को भी अप्रत्यक्ष रूप से फायदा पहुंचा सकती है।
निष्कर्ष
जलवायु परिवर्तन भारतीय कृषि, विशेष रूप से खरीफ फसलों पर लगातार और गहरा प्रभाव डाल रहा है। यह समस्या किसान समुदाय के लिए तत्काल समाधान की मांग करती है। बेहतर प्रौद्योगिकी, जल संरक्षण, और नीति-निर्माण में सुधार की दिशा में प्रयास, किसानों और देश दोनों के लिए सकारात्मक परिणाम ला सकते हैं। यदि समय रहते इन चुनौतियों पर ध्यान नहीं दिया गया, तो भारत के खाद्य सुरक्षा के लक्ष्यों को गम्भीर खतरा पहुंच सकता है।